abhiprerana – RAJ EDUCATION NEWS https://rajeducationnews.com My WordPress Blog Sun, 11 Jul 2021 17:06:22 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.2 https://rajeducationnews.com/wp-content/uploads/2024/03/cropped-cropped-1710597987698-32x32.png abhiprerana – RAJ EDUCATION NEWS https://rajeducationnews.com 32 32 अभिप्रेरणा-अभिप्रेरणा के सिद्धांत https://rajeducationnews.com/abhiprerna-ke-siddhant/ https://rajeducationnews.com/abhiprerna-ke-siddhant/#respond Sun, 11 Jul 2021 17:06:22 +0000 https://gurusmile.in/?p=560 Read more]]> अभिप्रेरणा-अभिप्रेरणा के सिद्धांत abhiprerana-abhiprerana-ke-siddhant

इस पोस्ट में हम अभिप्रेरणा के सिद्धांत Abhiprerana ke siddhant के बारे में जानेगे जो की विभिन्न शिक्षक भर्ती परीक्षाओ की तेयारी के लिए उपयोगी है क्योकि सभी शिक्षक भर्ती परीक्षाओ में अभिप्रेरणा से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते है

मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत 

प्रतिपादक विलियम मेक्दुग्ल  (1908 )

 जन्मजात प्रवृतियां मानव व्यवहार का उद्गम है जब व्यक्ति में कोई मूल प्रवर्ती होती है तो व्यक्ति के अंदर से देहिक व मानसिक तनाव उत्पन्न हो जाता है जिस से छुटकारा पाने के लिए वह निश्चित व्यवहार करता है

मूल प्रवृति क्या है 

मूल प्रवृतिया जन्म जात होती है जो स्वाभाविक रूप से सभी में समान रूप से पाई जाती है जेसे बच्चे का रोना ,जिज्ञासा ,गुस्सा करना

 विशेषताएं

  • मूल प्रवृतिया जन्मजात होती हैं यह सभी प्राणियों में पाई जाती है
  • आदतो  से भिन्न होती हैं सभी प्राणियों में समान पाई जाती है 
  • मूल प्रवृत्ति व्यवहार को प्रेरित करती हैं व व्यवहार से ही संचालित होती है 
  • मूल प्रवृत्तियां परिवर्तनशील होती हैं संवेग की उत्पति मूल प्रवृति से होती है 
  • मूल प्रवृत्तियों का विकास आयु के अनुसार होता है
  • संवेग पहले व मूल प्रवृतिया बाद में होती है

मेक्दुगल की 14 मूल प्रवृतियां की सूची में प्रत्येक मूल प्रवृत्ति एक संवेग से जुडी है अर्थात 14 संवेग भी बताएं जो मूल प्रवर्ती से जुड़े हुवे है 

 प्रमुख मूल प्रवृत्तियां व उनसे जुड़े संवेग 

मूल प्रवृति  संवेग 
पलायन भय
युयुत्सा क्रोध
अप्रियता
पुत्र कामना वात्सल्य
संवेदना कष्ट /दुःख
काम कामूकता
जिज्ञासा आश्चर्य
आत्महीनता / देन्यभाव अधीनता की  भावना
सामूहिकता एकाकीपन
आत्म प्रदर्शन श्रेष्ठता की भावना
भोजन अन्वेषण भूख
संचय / संग्रह अधिकार की भावना
रचना  प्रवृति रचना का आनन्द
हास्य आमोद /ख़ुशी

प्रत्येक मूल प्रवृत्ति में तीन मानसिक क्रियाएं होती हैं

  1.  ज्ञानात्मक
  2.  भावात्मक
  3.  क्रियात्मक

 मेक्दुगल ने  14 संवेग बताएं जिनमें भय संवेग को सबसे महत्वपूर्ण माना है वह व्यक्ति को अनुपयोगी व समाज विरोधी प्रवृत्ति से रोकता है

 मेक्दुगल  को ऊर्जा मनोविज्ञान का जनक माना गया है

 निरर्थक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मेक्दुगल के द्वारा किया गया

मूल प्रवृति के प्रत्यय का सर्वप्रथम प्रयोग विलियम जेम्स ने किया परन्तु पूर्ण सिद्दांत का कार्य मेक्दुगल के द्वारा किया गया

मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत

प्रतिपादक  सिगमंड फ्रायड

समर्थक यूंग व एडलर

इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति उन्हीं कार्यों को करता है जिसमें उसे सुख व संतोष की प्राप्ति होती है इसलिए इस सिद्धांत को सुखवादी सिद्धांत भी कहा जाता है फ्रायड का यह सिद्धांत लिबिडो काम प्रवृत्ति पर आधारित है

 प्रेम,स्नेह व काम प्रवृत्ति की इच्छा को लिवडो कहा गया है

 फ्रायड का मानना है कि अचेतन मन में दमित इच्छाएं,वासना तथा अन्य मानसिक ग्रंथियां होती हैं जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं

 इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति का व्यवहार इंड, इगो तथा सुपर इगो से प्रेरित होता है

 फ्राइड के अनुसार मूल प्रवृत्तियां दो प्रकार की होती हैं

 जीवन मूल प्रवृत्ति (इरोज ) जन्म से सम्बन्धित 

 मृत्यु मूल प्रवृत्ति (थैनाटोस) मृत्यु से सम्बन्धित 

 मनोविज्ञान को अचेतन का विज्ञान कहा जाता है

फ्रायड के अनुसार मन  की तीन स्थितिया पाई जाती है

1 ID(इदम ) इसका सम्बन्ध राक्षसीय प्रवृति ,आनन्द प्रवृति , पार्श्विक प्रवृति से होता है इदम का वास्तविक अर्थ गलत इच्क्षाये है

2 EGO (अहम ) यह वास्तविकता पर आधारित होता है असका सम्बन्ध सामाजिकता से है

3 SUPER EGO (परम अहम )इसका सम्बन्ध मष्तिष्क से है यह आदर्शवादी व उच्च नेतिकता वादी है

सुपर इगो जब इड पर हावी होता है तो बालक की इच्छाओ का दमन होता है वः ईश्वरीय प्रवृति वाला हो जाता है

बालक का जब इड व सुपर इगो के मध्य सम्बन्ध स्थापित होता है तो बालक समायोजित होगा

बालक में ईगो का विकास शेशावाव्स्था से

इगो सर्वाधिक किशोर अवस्था में होता है

उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धांत  स्किनर 

इस सिद्दांत के अनुसार उद्दीपक के अनुसार अनुक्रिया की जाती है अर्थात अभिप्रेरणा उद्दीपक के प्रभाव से आगे बढती है

नोट अधिगम के क्षेत्र में उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्दांत थार्नडाईक ने किया

चालक का सिद्दांत  क्लार्क लियोपोर्ड हल 

इस सिद्दांत के अनुसार प्रेरक जितना अधिक तीव्र होता है अभिप्रेरणा उतनी ही तीव्रता से काम करती है चालक कमजोर होगा तो अभिप्रेरणा भी मंद गति से कार्य करती है

प्रोत्साहन का सिद्दांत  बोल्स एवं कोल्फ्मेन 

इस सिद्दांत के अनुसार व्यक्ति उसी दिशा में कार्य करता है जहां प्रोत्साहन अधिक मिलता है प्रोत्साहन दो प्रकार का होता है

  1. धनात्मक
  2. ऋणात्मक

 

 उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धांत

 प्रतिपादक  मेक्लिलेंड 

 समर्थक एटकिंसन व होयेंगा 

 इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति की उपलब्धि व आकांक्षाओं का स्तर अलग अलग होता है वह उन्हीं के अनुसार किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित होता है उपलब्धि अभिप्रेरणा से प्रेरित होकर व्यक्ति प्रयास करता है जिससे उसे सफलता मिलती है

फर्नाल्ड के अनुसार उपलब्धि अभिप्रेरणा से तात्पर्य श्रेष्ठता के विशेष स्तर को प्राप्त करने की इच्छा है

लक्ष्य को प्राप्त करने यह सफलता प्राप्त करने की प्रवृत्ति को उपलब्धि अभिप्रेरणा कहा जाता है

 उपलब्धि अभिप्रेरणा एक सामाजिक व अर्जित प्रेरक है

आवश्यकता पदानुक्रम का सिद्धांत

प्रतिपादक अब्राहम मास्लो

 इस सिद्धांत को आत्मानुभूति सिद्धांत,आत्मसिद्धि सिद्धांत के नाम से भी जाता है अब्राहम मास्लो ने आवश्यकताओ का एक पिरामंड प्रस्तुत किया 

 मास्लो के अनुसार आवश्यकताएं पांच प्रकार की होती हैं जिन्हें दो श्रेणियों में बांटा गया है

  1.  निम्न स्तर की आवश्यकता (1 ,2 ,3 )
  2.  उच्च स्तर की आवश्यकता (4 ,5 )

 

  1.  आत्म सिद्धि की आवश्यकता
  2.  सम्मान की आवश्यकता
  3.  स्नेह व संबंध की आवश्यकता
  4.  सुरक्षा की आवश्यकता
  5.  दैहिक आवश्यकता

मास्लो के अनुसार सामाजिक वातावरण में व्यक्ति सबसे पहले अपनी प्राथमिक आवश्कताओ की पूर्ति करने का प्रयास करता है उसके बाद वह द्वितीयक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए कार्य करता है

  •  अभिप्रेरणा का सर्वाधिक संबंध अधिगम से है
  •  दुश्चिंता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया
  •  आदतें अर्जित की जाती है
  •  अभिप्रेरणा को अधिगम का आधार सोरेनसन ने कहा है 

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