SCIENCE – RAJ EDUCATION NEWS https://rajeducationnews.com My WordPress Blog Tue, 29 Jun 2021 05:39:56 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.2 https://rajeducationnews.com/wp-content/uploads/2024/03/cropped-cropped-1710597987698-32x32.png SCIENCE – RAJ EDUCATION NEWS https://rajeducationnews.com 32 32 विज्ञान शिक्षण विधियां पार्ट 2 https://rajeducationnews.com/science-teaching-method/ https://rajeducationnews.com/science-teaching-method/#respond Tue, 29 Jun 2021 05:39:56 +0000 https://gurusmile.in/?p=485 Read more]]> विज्ञान शिक्षण विधियां पार्ट 2

दोस्तों पिछली पोस्ट में हमने विज्ञान शिक्षण विधि की सामान्य जानकारी के बारे में पढ़ा उसके अंतर्गत विज्ञान शिक्षण के अनुसंधान विधि प्रयोगशाला विधि प्रोजेक्ट प्रायोजना विधि समस्या समाधान विधि पर्यटन विधि और अभिक्रमित अनुदेशन विधि के बारे में अध्ययन किया विचार वमर्श विधि इसमें विद्यार्थियों के समक्ष कोई समस्या प्रस्तुत की जाती है जिसके समाधान के लिए कक्षा के विद्यार्थी अनेक समूह में विभक्त कर दिए जाते हैं इस विधि के अंतर्गत विद्यार्थी सक्रिय रहते हैं उन्हें आलोचनात्मक तर्क चिंतन व स्वाध्याय के विकास के लिए इस विधि का प्रयोग करने हेतु स्वतंत्र रूप से छोड़ा जाता है इस विधि के अंतर्गत छात्रों में अनुशासन बनाए रखना कठिन है पाठ्यक्रम धीमी गति से पूरा होता है वैज्ञानिक विधि                                                      वैज्ञानिक विधि के अंतर्गत अध्ययन करने में खोज करने में तर्कपूर्ण ढंग से इस विधि को अपनाया जाता है वैज्ञानिक विधि का उपयोग विज्ञान शिक्षण में प्रमुख रूप से होना चाहिए समय अधिक लगता है                                          वैज्ञानिक विधि के मुख्य चरण                                  समस्या का निर्धारण जितेंद्र कस्टम समस्या को सूक्ष्म दृष्टि से देखता है समस्या क्या है कैसी है वह क्यों में अति प्रसन्न उसके दिमाग में घूमते हैं समस्या से संबंधित तथ्य को इकट्ठा किया जाता है और उनका वर्गीकरण किया जाता है

 

परिकल्पना का निर्माण करना वैज्ञानिक समस्या से संबंधित तथ्य के आंकड़ों को इकट्ठा कर समस्या से संबंधित संभावित समाधान के विषय में सोचता है प्रयोग के आधार पर परिकल्पना की सत्यता की जांच की जाती है निष्कर्ष निकाले जाते हैं वह सिद्धांत का प्रतिपादन किया जाता है और उसके बाद में नवीन परिस्थितियों में ज्ञान का उपयोग किया जाता है विशेषताएं वैज्ञानिक विधि के अंतर्गत प्रत्यक्ष ज्ञान का अनुभव होता है अनुभव की वृद्धि होती है विज्ञान के प्रत्येक तथ्य का विश्लेषण करके उसके प्रत्येक भाग के बारे में सूक्ष्म व बारीकी से समझने का प्रयत्न किया जाता है वैज्ञानिक विधि पक्षपात रहित रहती है वैज्ञानिक विचार किसी व्यक्ति विशेष की धारणाओं पर निर्भर नहीं रहते वैज्ञानिक विधि सत्य की खोज करती है वह सत्य को ज्ञात करना ही उसका उद्देश्य होता है विज्ञान वस्तुनिष्ठ  मापन पर मापन यंत्रों का शोधन होगा उसमें सूक्ष्मता आती है और यह हमारे लिए नई ज्ञान को ले करके आती है

पाठ्यपुस्तक विधि अध्यापक विद्यार्थियों को बारी-बारी से किसी पाठ के अंश को पढ़ाते हैं वह बीच-बीच में उसके अर्थ बताते हुए जाते हैं इसे पाठ्यपुस्तक विधि कहते हैं इस विधि के अंतर्गत अध्यापक और छात्र दोनों ही सक्रिय भूमिका में रहते हैं छोटी कक्षाओं के लिए यह शिक्षण विधि अति महत्वपूर्ण है

व्याख्या विधि  व्याख्या विधि को भाषण विधि के नाम से भी जाना जाता है इस में शिक्षक की भूमिका प्रमुख होती है तथा छात्र निष्क्रिय अवस्था में बैठे रहते हैं व्याख्यान विधि के अंतर्गत छात्रों के लिए नीरस होती है अरुचिकर होती है छात्रों में रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है छात्र अक्रियाशील अवस्था में रहते हैं और यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है

प्रश्नोत्तर विधि प्रश्नोत्तर विधि के जनक सुकरात को माना जाता है प्रश्नोत्तर विधि का शिक्षण की प्रभावशीलता को बढ़ाता है क्योंकि गतिविधि आधारित है जिसमें शिक्षण कार्य में विद्यार्थी की सहभागिता बढ़ती है

विज्ञान शिक्षण के साधन।                                            चार्ट    चार्ट पर चित्र बनाए जा सकते हैं रेखा चित्र बनाए जा सकते हैं आंकड़े प्रस्तुत किए जा सकते हैं विशेष जटिल विचारों को चित्रों के माध्यम से चार्ट पर प्रस्तुत किया जा सकता है और उन्हें आसानी से समझाया जा सकता है।     चित्र    आवश्यकता अनुसार चित्रों के अनुसार दीवारों पर प्रक्षेपित किया जाता है जिससे विद्यार्थियों की वैज्ञानिक समस्याओं को आसानी से समझा जा सकता है।        श्यामपट्ट    श्यामपट्ट शिक्षक का परम मित्र कहा जाता है श्यामपट्ट कार्य में अध्यापक की कुशलता शिक्षण को बहुत अधिक लाभान्वित बना सकती है श्यामपट्ट दृश्य सामग्री में शामिल किया जाता है।                                          बुलेटिन बोर्ड     सार्वजनिक सूचना के लिए यह सबसे अच्छा साधन है विज्ञान कक्षा में प्रयोगशाला के उपयोग के बारे में बहुत सी सूचनाएं इस पर लिख कर लगाई जा सकती है

प्रयोगशाला विधि

इस विधि के विकास का श्रेय राष्ट्रीय प्रशिक्षण प्रयोगशाला बिथले माइने को है मुख्य उद्देश्य व्याख्यान विधि के दोष को दूर करना है इस विधि के द्वारा छात्रों में अनुसंधान की प्रवृत्ति का  विकास किया जाता है इसमें छात्र विभिन्न प्रयोगों के बाद सिद्धांतों या सुत्र की स्थापना करते हैं इस विधि के द्वारा करके सीखना और निरीक्षण करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है गणित शिक्षण में विभिन्न प्रकार के नापतोल का ज्ञान कराने के लिए प्रयोगशाला विधि काम में ली जाती है यह माध्यमिक कक्षाओं के लिए सर्वाधिक उपयोगी मानी जाती है प्रयोगशाला विधि क्रियात्मक विधि है जो पूर्ण रूप से क्रिया पर आधारित है इस विधि के द्वारा बालक नियम व तथ्यों की जांच करता है

प्रयोगशाला विधि में बालक ज्ञान को प्राप्त करने के लिए प्रयोग द्वारा सीखता है इसी वजह से यह प्रयोगशाला विधि कही जाती है साथ में यह विधि प्रयोगशाला नहीं की जा सकती है

प्रयोगशाला विधि में प्रयुक्त शिक्षण सूत्र

ज्ञात से अज्ञात, स्थूल से सूक्ष्म, अनुभव से तर्क, विशिष्ट से सामान्य

प्रयोगशाला विधि मनोवैज्ञानिक विधि है क्योंकि इसके अंतर्गत बालक अपनी रूच यह बाल केंद्रित विधि है इस विधि में बालक वैज्ञानिक की तरह सोचता है चिंतन करता है समस्या का हल खोजता है निरीक्षण करता है वह परीक्षण भी करता है इस विधि के द्वारा प्राप्त ज्ञान इस पर स्टोरी स्थाई होता है प्योर तरीके हैं करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है वैज्ञानिक विधि के द्वारा छात्रों की अभिवृत् का विकास होता है

अभिक्रमित अनुदेशन विधि

अभिकमित अनुदेशन विधि के जनक बी एफ स्कीनर है। बी.एफ. स्कीनर ने डॉ. प्रेसी के सहयोग से इस विधि का निर्माण 1854 में किया। डॉ. सिडनी एल. प्रेसी ने शिक्षण मशीन का निर्माण तथा सर्वप्रथम शिक्षण मशीन का प्रयोग किया।  यह विधि पुनर्बलन के सिद्धान्त पर अधारित है।। इस विधि का प्रतिपादन बी.एफ स्कीनर ने अपनी 11 वर्षाय बेटी बेरी की अधिगम समस्या के समाधान हेतु तथा मानसिक रूप से पिछडे छात्रो के लिए किया। इस विधि मे पाठ्य पुस्त्तक को छोटे-छोटे टुकडों में विभाजित किया। इन छोटे दुकडो को शिक्षण पद कहतें है स्कीनर ने हार्वर्ड विश्वि्यालय (अमेरिका) मे प्रोफेसर थे। अभिक्रमित अनुदेशन विधि का दूसरा नाम आपरे्ट प्रतिबद्ध अनुक्रिया शिक्षण प्रतिमान है। इस विधि में शिक्षक की आवश्वकता नहीं होती है।

अभिक्रमित अनदेशन विधि के गुणः

1. बालकों में स्वाध्याय की आदत का विकास।                 2. आत्मनिर्भरता व आत्मविश्वास पैदा होता है।                 3. प्राप्त ज्ञान स्थायी।                                                  4 . बाल केन्द्रित।                                                         5. मनोवैज्ञानिक – व्यक्तिगत विभिन्नता पर आधारित।        6. स्वगति व स्वयं के प्रयासों से सीखता है।                       7. छात्र पूर्णतः: क्रियाशील (स्किय) रहता है।                    8. तार्किक विश्लेषण – तर्क पुर्ण व तारतम्यता पूर्ण क्रमबद्धता 9. पुर्बलन या प्रतिपुष्टि के सिद्धान्त पर आधारित।             10.छात्र सवयं उत्तरों की जॉच ।                                   11. शिक्षक की आवश्यकता नहीं ।

 

 

विज्ञान शिक्षण व शिक्षण विधियां.

अधिगम, अधिगम के सिद्धांत

मनोविज्ञान, शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के सम्प्रदाय,शिक्षा मनोविज्ञान की अध्ययन पद्धतियां

उपसर्ग – परिभाषा, भेद और उदाहरण

http://www.google.com

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विज्ञान का अर्थ

पर्यावरण को समझने के लिए किए गए प्रयत्न विज्ञान कहा जाता है! विज्ञान लेटिन भाषा के साइंटिया शब्द से बना है जिसमें SCIO अर्थ होता है जानना

आइंस्टीन के अनुसार ~ हमारी ज्ञान अनुभूतियों की अस्त-व्यस्त है जनता क तर्कपूर्ण एक विचार प्रणाली बनाने के प्रयास को विज्ञान कहते हैं

वुडवर्न के अनुसार ~ विज्ञान वह मानवीय व्यवहार है जो प्राकृतिक वातावरण में स्थित परिस्थिति, घटित घटनाओं की अधिकतर शुद्धता से व्याख्या करने का प्रयास करता है

1937 में महात्मा गांधी के द्वारा बुनियादी शिक्षा में विज्ञान  को उद्योगों के आधार पर पढ़ने पर जोर दिया गया

विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

व्यावहारिक उद्देश्य

अनुशासनात्मक उद्देश्य

सांस्कृतिक व नैतिक उद्देश्य

व्यवसायिक उद्देश्य

अवकाश के समय का सदुपयोग

छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास

विज्ञान की आवश्यकता

व्यवहारिक जीवन में उपयोगी,सांस्कृतिक मूल्यों का विकास,मानसिक अनुशासन में सहायक, नैतिक मूल्यों का विकास, बौद्धिक मूल्यों का विकास

विद्यालय स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

  • प्राथमिक स्तर पर ~
  • बालकों में व्यवस्थित रूप से सोचने की आदत का विकास करना,
  • बालकों में रचनात्मक व गणनात्मक शक्तियों का विकास करना,
  • बालकों में प्राकृतिक घटनाओं के खोज व वर्गीकरण की योग्यता का विकास करना,
  • बालकों में प्रकृति और भौतिक व सामाजिक पर्यावरण के प्रति रुचि बनाए रखना,
  • बालकों में स्वस्थ जीवन के लिए अच्छी आदतों का विकास करना,
  • बालकों में स्वच्छ व क्रमबद्धता से कार्य करने की आदत डालना,
  • उच्च प्राथमिक विद्यालय स्तर पर,छात्र में वैज्ञानिक तथ्यों का ज्ञान प्रदान करना,
  • तार्किक रूप से सोचने की योग्यता का विकास करना,
  • तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालने की योग्यता का विकास करना

माध्यमिक स्तर पर

  • विज्ञान पाठ्यक्रम के लिए आवश्यक सूचना तथा तथ्य प्रयोग के आधार पर अभ्यास किया जाना,
  • बालकों में तथ्यों से सामान्य करण तक पहुंचने की योग्यता का विकास करना,
  • जनजीवन पर विज्ञान के प्रभाव को समझना व वैज्ञानिक अभिरुचि का विकास करना,
  • विज्ञान के महान आविष्कार और कहानियों के जीवन से प्रेरित होना,
  • विज्ञान की प्रगति और विकास
  • प्राथमिक स्तर पर विज्ञान पाठ्यक्रम का केंद्र बिंदु विद्यार्थी होता है।
  • प्राथमिक स्तर पर विज्ञान को पर्यावरण विज्ञान कहते हैं।
  • माध्यमिक स्तर पर परिपक्वता के अनुसार आस पास के वातावरण सहित पर्यावरण व प्रायोगिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।

विज्ञान के शिक्षक के गुण

प्रभावशाली व्यक्तित्व अध्यापक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिए उसे नेतृत्व क्षमता,निर्देशन क्षमता,आत्म नियंत्रण,तत्परता आदि गुुणों के साथ-साथ नियमों के अनुकूल होना आवश्यक है। वैज्ञानिक सक्रियता विज्ञान के शिक्षक को विज्ञान के ज्वलंत समस्याओं से परिचित होना जरूरी है पर्यावरण गतिविधियों के प्रति सचेत रहकर उसमें अपना सक्रिय योगदान देने वाला होना चाहिए

आदर्श वैज्ञानिक ~विज्ञान के शिक्षक को आदर्श वैज्ञानिक के सभी गुण जैसे तर्क ,निर्देशन आदि का होना आवश्यक है व्यवसायिक गुण ~इसमें विषय का ज्ञान,व्यापक दृष्टिकोण,मनोविज्ञान का ज्ञान, शैक्षिक नवाचार का ज्ञान व कक्षा नियंत्रण होना आवश्यक है

विज्ञान शिक्षण की विधियां

किसी भी विषय के अध्ययन के लिए शिक्षण विधियों का होना अति आवश्यक है शिक्षण विधियों के माध्यम से विषय का ज्ञान सरलता,सहजता व रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है शिक्षण विधियों के माध्यम से सुनिश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति सहज तरीके से प्राप्त की जा सकती है

प्रयोगशाला विधि~ यह मनोवैज्ञानिक विधि है अर्थात वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग पर आधारित है इस विधि में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण है । विद्यार्थी सक्रिय भूमिका व अध्यापक निरीक्षण की भूमिका में रहता है ।इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है यह क्रिया पर आधारित है छात्र स्वयं करके सीखता है छात्रों में उपकरण प्रयोग की कुशलता आती है वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है छात्रों में श्रम की महत्वता का विकास होता है छात्रों में निरीक्षण,तर्कशक्ति, ज्ञान, कौशल व आत्मविश्वास जैसे गुणों का विकास होता है छात्रों में सहयोग की भावना का विकास होता है इस विधि के द्वारा अच्छे गुणों के विकास में सहायक है

दोष

इस विधि में लापरवाही से किए गए कार्य दुर्घटना को जन्म दे सकते हैं अत्यधिक उपकरणों की आवश्यकता होती है इस विधि में खर्चा अधिक होता है छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है शिक्षक निष्क्रिय रहता है इस विधि में विद्यार्थी से अत्यधिक आशा रहती हैं

अनुसंधान/ह्यूरेस्टिक विधि~

इस विधि के प्रवर्तक के प्रोफेसर आर्मस्ट्रांग है इसमें अध्यापक पथ प्रदर्शक होता है तथा छात्र सक्रिय रहता है इस विधि से छात्रों में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है ह्यूरेस्टिक शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा से हुई है जिसका अर्थ होता है मैं स्वयं खोजता हूं इस विधि में बालक को कम से कम बता करके अधिक से अधिक खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है इस विधि में छात्र अनुसंधानकर्ता की भूमिका में रहता है इस विधि के द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है छात्र क्रियाशील रहते हैं और करके सीखते हैं

अनुसंधान विधि के चरण

  • समस्या
  • अध्यापक द्वारा समस्या से संबंधित निर्देश
  • छात्र द्वारा अन्वेषक के रूप में समस्या पर विचार करना
  • संबंधित पाठ्यक्रम का अध्ययन
  • समस्या का निरीक्षण,तर्क व प्रयोग
  • निर्णय
  • मूल्यांकन

अनुसंधान विधि के गुण

छात्र स्वयं करके सीखते हैं जिससे छात्रों में आत्मविश्वास क्रियाशीलता अनुशासन जैसे गुणों का विकास होता है छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है बालक निरीक्षण व जिज्ञासा की भावना विकसित होती विद्यार्थियों में उनकी योग्यता व रूचि के अनुसार मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है छात्र स्वयं खोजने के कारण इसमें क्रियाशीलता पर आधारित होता है यह विधि स्वाध्याय पर बल देती है छात्रों का तार्किक दृष्टिकोण विकसित होता है ज्ञान स्पष्ट व स्थाई होता है

प्रयोगशाला विधि के दोष

अधिक समय व शक्ति की आवश्यकता होती है। यह विधि खर्चीली विधि है यह विधि प्राथमिक व उच्च प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है यह माध्यमिक व उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी है प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होती है छात्रों की संख्या अधिक होने पर इस विधि का प्रयोग व्यवहारिक नहीं होता इस विधि के द्वारा अध्यापन कार्य मंद गति से होता है जिससे समय की कमी होती है सीमित साधन वाले विद्यालयों में उपयोगी नहीं है मंदबद्धि बच्चों के लिए उपयोगी नहीं

प्रोजेक्ट,प्रायोजना या योजना विधि

इस विधि के प्रवर्तक हेनरी किलपेट्रिक है। इस विधि के द्वारा विद्यार्थी किसी समस्या के समाधान हेतु किसी प्रोजेक्ट को लेकर योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने का प्रयास करते हैं प्रोजेक्ट पर विभिन्न क्षमता वाले अलग-अलग छात्र अपनी योग्यता के अनुसार योगदान देते हैं अध्यापक मार्गदर्शक के रुप में भूमिका निभाता है

प्रोजेक्ट, परियोजना,योजना विधि के चरण :-

  • परिस्थिति उत्पन्न करना
  • योजना का चयन उद्देश्य स्पष्टीकरण
  • प्रोजेक्ट का नियोजन
  • प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन
  • मूल्यांकन
  • रिपोर्ट तैयार करना

प्रोजेक्ट पद्धति में सीखने के तीन नियम बताए गए हैं जो थोर्नडाइक के अनुसार है

तत्परता का नियम- बच्चो को उनकी रुचि के अनुसार कार्य देना चाहिए जिससे वह उन्हें तत्परता से कर सकें

प्रभाव का नियम- किए जा रहे कार्य का सकारात्मक परिणाम बच्चों को उस कार्य को करने पर प्रभाव डालता है ऐसे में अधिक सक्रिय व शीघ्र गति से करता है

अभ्यास का नियम- किसी कार्य को बार बार करने से विद्यार्थी उसमें अभ्यस्त हो जाता है और वह किए जा रहे कार्य को शीघ्र गति से कर सकता है

प्रायोजना विधि के गुण- यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है यह विद्यार्थियों की रुचि व मनोवृतियों पर पूरा ध्यान केंद्रित करती है।करके सीखने के नियम का पालन किया जाता है छात्रों में सामाजिकता की भावना का विकास होता है उनमें आत्मविश्वास,आत्मनिर्भर के गुणों का विकास भी किया जाता है। छात्र इस विधि के द्वारा स्वतंत्रता पूर्वक सोचने विचारने निरीक्षण करने के अवसर मिलता है।

विधि के दोष – इस विधि के अंतर्गत समय अधिक लगता है इस कारण संपूर्ण पाठ्यक्रम को एक निश्चित अवधि में पूरा नहीं किया जा सकता। इस विधि में अत्यधिक धन व समय की आवश्यकता होती है।

पर्यटन विधि इस विधि के जन्मदाता पेस्टोलॉजी है इस विधि के द्वारा छात्र प्रत्यक्ष देख कर के ज्ञान प्राप्त करते हैं जिसे ज्ञान स्थाई सुदृढ़ होता है छात्रों में जिज्ञासा,निरीक्षण शक्ति का विकास होता है। विधार्थियो में मानसिक शक्तियों का विकास होता है। पर्यटन स्थलों का ज्ञान प्राप्त होता है

पर्यटन विधि के दोष यह खर्चीली भी खर्चीली विधि है पर्यटन के कारण समय अधिक लगता है जिससे पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया जा सकता। पर्यटन स्थल पर दुुर्घटना की आशंका रहती है

अभिक्रमित अनुदेशन विधि

इस विधि के अंतर्गत छात्रों के लिए पाठ्यवस्तु को क्रम बंद रूप से छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत किया जाता है प्रत्येक पद को पढ़ने के साथ छात्रों को अनुक्रिया से पुनर्बलन प्रदान किया जाता है छात्र स्वयं अध्ययन के द्वारा सीखता है छात्रों को नवीन ज्ञान तथा पुनर्बलन प्रदान किया जाता है

अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धांत  छोटे छोटे पदों का सिद्धांत- अभिक्रमित अनुदेशन में विषय वस्तु को छोटे-छोटे पदों में बांटा जाता है जिसे कमजोर छात्र भी प्रस्तुत विषय सामग्री को आसानी से समझ सकता है

क्रियाशीलता का सिद्धांत विद्यार्थी को क्रियाशील रखने के लिए स्वयं करके सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है अभिक्रमित अनुदेशन में रिक्त स्थान की पूर्ति करने वाले प्रश्नों का समावेश किया जाता है

पुनर्बलन का सिद्धांत अभिक्रमित अनुदेशन में छात्र छात्राओं को प्रत्येक पद के बाद सही गलत के उत्तर प्रदान किए जाते हैं और उनको पुनर्बलन प्रदान किया जाता है

तार्किक क्रम का सिद्धांत अभिक्रमित अनुदेशन स्वाध्याय की प्रवृत्ति पर अत्यधिक बल देता है विषय वस्तु को एक व्यवस्थित तार्किक क्रम से दिया जाताा है जो ज्ञात से अज्ञात की ओर सूत्र का प्रयोग किया जाता है

रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन की विशेषता यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे फ्रेम में प्रस्तुत करने के कारण बालक को समझने के लिए आसान होती है व्यक्तिगत विभिन्नता के कारण इस शिक्षण विधि से शिक्षण सरल होता है रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन के कारण विद्यार्थी क्रियाशील हो कर सीखता है बालक कम गलतियां करता है इस रेखीय अनुदेशन का प्रयोग पत्राचार पाठ्यक्रम में सर्वाधिक किया जाता है

PART 2 UPCOMING SOON……………

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