भाषा और वर्ण विचार नोट्स पीडीएफ़
आज हम बात करेंगे हिंदी भाषा में भाषा और वर्ण विचार के बारे में ,भाषा के द्वारा अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का माध्यम है जिसमे हम अपने विचारों को व्यक्त करते है
भाषा और व्याकरण
भाषा शब्द संस्कृत के ‘भाष्’ धातु से व्युत्पन्न है। ‘भाष्’ धातु से अर्थ ध्वनित होता है-प्रकट करना। जिस माध्यम से हम अपने मन के भा एवं मस्तिष्क के विचार बोलकर प्रकट करते हैं, उसे ‘भाषा’ संज्ञा दी गई है। भाषा ही मनुष्य की पहचान होती है।उसके व्यापक स्वरूप के संबंध में कहा जा सकता है कि – “भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम सोचते हैं और अपने भावों / विचारों को व्यक्त करते हैं।”
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। समय के साथ-साथ भाषा में भी परिवर्तन आता रहता है। इसी कारण संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि आर्य भाषाओं की स्थान पर आज हिंदी, राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, सिंधी, बंगला, उड़िया, असमिया, मराठी आदि अनेक भाषाएं प्रचलित हैं।
भारतकी राजभाषा हिंदी स्वीकारी गई है ।
किसी भाषा के व्याकरण ग्रंथ में निम्नलिखित तीन तत्वों की विशेष एवं आवश्यक रूप से चर्चा की जाती है। 1.वर्ण 2.शब्द 3.वाक्य ।
वर्ण विचार
हिंदी विश्व की सभी भाषाओं में सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है। हिंदी में 44 वर्ण है, जिन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है – स्वर और व्यंजन ।
स्वर
ऐसी ध्वनियाॅं जिनका उच्चारण करने में अन्य किसी ध्वनि की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, उन्हें स्वर कहते हैं । स्वर ग्यारह होते हैं- आ,आ,इस,ई,उ,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ,ऋ । इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है। हृस्व एवं दीर्घ ।
जिन स्वरों के उच्चारण में अपेक्षाकृत कम समय लगे उन्हें हृस्व स्वर एवं जिन स्वरों के उच्चारण में अधिक समय लगे उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं ।
इन्हें मात्रा द्वारा भी दर्शाया जाता है । ये दो स्वरों को मिलाकर बनते हैं, अतः इन्हें संयुक्त स्वर भी कहा जाता है । आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ दीर्घ स्वर हैं ।
स्वरों के मात्रा रूप इस प्रकार हैं :
आ – कोई मात्रा नहीं
आ -ा
इ – ि
ई – ी
उ – ुु
ऊ – ूू
ए – ेे
ऐ – ैै
ओ – ो
औ – ौ
ऋ – ृृ
व्यंजन
जो ध्वनियाॅं स्वरों की सहायता से बोली जाती हैं, उन्हें व्यंजन कहते हैं । जब हम क बोलते हैं तब उसमें क्+अ मिला होता है। इस प्रकार हर व्यंजन स्वर की सहायता से ही बोला जाता है। इन्हें पाॅंच वर्गों तथा स्पर्श, अंतस्थ एवं ऊष्म व्यंजनों में बाॅंटा जा सकता है ।
स्पर्श :
क वर्ग – क्, ख्, ग्, घ्, ङ् ।
च वर्ग – च्, छ्, ज्, झ्, ञ् ।
ट वर्ग – ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण् ।
त वर्ग – त्, थ्, द्, ध्, न् ।
प वर्ग – प्, फ्, ब्, भ्, भ् ।
अन्तस्थ – त्, र्, ल्, व् ।
ऊष्म – श्, ष्, स्, ह् ।
संयुक्ताक्षर – इसके अतिरिक्त हिंदी में तीन संयुक्त व्यंजन भी होते हैं-
क्ष – क्+ष् ।
त्र – त्+र् ।
ज्ञ – ज्+ञ् ।
हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर और 33 व्यंजन अर्थात् कुल 44 वर्ण है तथा 4 संयुक्ताक्षर हैं ।
वर्णों के उच्चारण स्थान – भाषा को शुद्ध रूप में बोलने और समझने के लिए विभिन्न वर्णों के उच्चारण स्थानों को जानना आवश्यक है ।
वर्ण उच्चारण स्थान वर्ण ध्वनि का नाम
1. अ, आ, क वर्ग कंठ कोमल तालु कंठ्य
और विसर्ग
2. इ, ई, च वर्ग, य्, श् तालु तालव्य
3. ऋ, ट वर्ग, र्, ष् मूर्द्धा मूर्द्धन्य
4. लृ, त वर्ग, ल्, स् दन्त दन्त्य
5. उ, ऊ, प वर्ग ओष्ठ ओष्ठ्य
6. अं, ङ्, ञ्, ण्, न्, म् नासिका नासिक्य
7. ए, ऐ कंठ तालु कंठ – तालव्य
8. ओ, औ कंठ ओष्ठ कंठोष्ठय
9. व् दन्त ओष्ठ दन्तोष्ठ्य
10. ह स्वर यन्त्र अलिजिह्वा
हिंदी के वर्णो का उनके उच्चारण स्थान के आधार पर वर्गीकरण
1. कण्ठ्य वर्ण :-जिन वर्णो का उच्चारण कंठ से होता है। कंठ से उच्चारित वर्ण जैसे – अ , आ (स्वर) , क, ख , ग, घ, ङ (व्यंजन) और विसर्ग (:)
2. तालव्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में जिहवा का मध्य भाग तालु से स्पर्श करता है। उन्हें तालव्य वर्ण कहते है। तालु से उच्चारित वर्ण जैसे – इ , ई(स्वर) , च, छ, ज, झ, ञ , य , श (व्यंजन)
3. मूर्द्धन्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण मूर्द्धा से होता है। उन्हें मूर्द्धन्य वर्ण कहते है। मूर्द्धा से उच्चारित वर्ण जैसे- ऋ (स्वर) , ट, ठ, ड, ढ, ण, र, ष (व्यंजन)
4. दन्त्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में जिहवा का अग्र भाग दन्त से स्पर्श करता है। उन्हें दन्त्य वर्ण कहते है। दन्त से उच्चारित वर्ण जैसे- लृ , त, थ, द, ध, न, ल, स (सभी व्यंजन)
5. ओष्ठ्य वर्ण :– जिन वर्णो के उच्चारण में दोनों होठ स्पर्श करते है। उन्हें ओष्ठ्य वर्ण कहते है। ओष्ठ से उच्चारित वर्ण जैसे- उ ,ऊ (स्वर) , प, फ, ब, भ, म (व्यंजन)
6. नासिक्य वर्ण :- जिन वर्णो का उच्चारण मुँह और नाक दोनों से होता है। उन्हें नासिक्य वर्ण कहते है। नासिका से उच्चारित वर्ण जैसे- अं , ङ, ञ , ण , न , म
7. कंठतालव्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में कंठ तथा तालु दोनों का सहयोग होता है। उन्हें कंठतालव्य वर्ण कहते है। कंठ-तालु से उच्चारित वर्ण जैसे- ए , ऐ
8. कंठोष्ठ्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में कंठ तथा ओष्ठ दोनों का सहयोग होता है। उन्हें कंठोष्ठ्य वर्ण कहते है। कंठ-ओष्ठ से उच्चारित वर्ण जैसे – ओ , औ
9. दन्तोष्ठ्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में दन्त तथा ओष्ठ दोनों का सहयोग होता है। उन्हें दन्तोष्ठ्य वर्ण कहते है। दन्त-ओष्ठ से उच्चारित वर्ण जैसे – व
10. वर्त्स्य वर्ण :- जिन अरबी-फ़ारसी वर्णो के उच्चारण ऊपर वाले मसूड़ों के कठोरतम भाग से होते है , उन्हें वर्त्स्य वर्ण कहते है। वर्त्स्य से उच्चारित वर्ण जैसे – फ़ और ज़।
11. जिह्वामूलक वर्ण :- जिन अरबी- फ़ारसी वर्णो का उच्चारण जिहवा के पीछे के भाग से होता है। उन्हें जिह्वामूलक वर्ण कहते है। जिह्वामूलक से उच्चारित वर्ण जैसे – क़ , ख़ और ग़।
12. अलिजिह्वा/काकल्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में मुख खुला रहता है , तथा वायु कंठ को खोलकर झटके से बाहर निकलती है। उन्हें अलिजिह्वा वर्ण या काकल्य वर्ण कहते है। जैसे – ह।
अनुनासिक ध्वनियों के उच्चारण में वर्ण विशेष के उच्चारण स्थान के साथ-साथ नासिका का भी उपयोग होता है । अतः अनुनासिक वर्णों का उच्चारण स्थान उस वर्ग का उच्चारण स्थान और नासिका होगा ।
जैसे अं में कंठ और नासिका दोनों का उपयोग होता है अतः इसका उच्चारण स्थान कंठ नासिका होगा ।
उच्चारण की दृष्टि से व्यंजनों को आठ भागों में बांटा जा सकता है:
1. स्पर्शी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफड़ों से छोड़ी जाने वाली हवा वाग्यंत्र के किसी अवयव का स्पर्श करती है और फिर बाहर निकलती है । निम्नलिखित व्यंजन स्पर्शी हैं :
क् ख् ग् घ् ; ट् ठ् ड् ढ्
त् थ् द् ध् ; प् फ् ब् भ्
2.संघर्षी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में दो उच्चारण अवयव इतनी निकटता पर आ जाते हैं कि बीच का मार्ग छोटा हो जाता है तब वायु उनमें घर्षण करती हुई निकलती है । ऐसे व्यंजनो को संघर्षी व्यंजन कहते हैं – श्, ष्, स्, ह्, ख्, ज्, फ्
3. स्पर्श संघर्षी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्पर्श का समय अपेक्षाकृत अधिक होता है और उच्चारण के बाद वाला भाग संघर्षी हो जाता है, ऐसे व्यंजन स्पर्श संघर्षी व्यंजन कहलाते हैं – च्, छ्, ज्, झ् ।
4. नासिक्य : जिन व्यंजनों के उच्चारण में हवा का प्रमुख अंश नाक से निकलता है, वे व्यंजन नासिक्य व्यंजन कहलाते हैं – ङ्, ञ्,ण्, न्, म् ।
5. पार्श्विक : जिनके उच्चारण में जीह्वा का अगला भाग मसूड़ों को छूता है और वायु पार्श्व आस-पास से निकल जाती है, ऐसे व्यंजन पार्श्विक व्यंजन कहलाते हैं – ल् ।
6. प्रकम्पित : जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीह्वा को दो-तीन बार कंपन करना पड़ता है, ऐसे व्यंजन प्रकम्पित्त व्यंजन कहलाते हैं। जैसे – र् ।
7. उत्क्षिप्त : जिन वर्णों के उच्चारण में जीह्वा की नोक झटके से नीचे गिरती है तो वह उत्क्षिप्त (फेंका हुआ) ध्वनि कहलाती है । ड्, ढ् उत्क्षिप्त ध्वनियाॅं हैैं ।
8. संघर्ष हीन : जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा बिना किसी संघर्ष के बाहर निकल जाती है वे ध्वनियाॅं संघर्षहीन ध्वनियाॅं कहलाती हैं । जैसे – य, व । इनके उच्चारण में स्वरों से मिलता जुलता प्रयत्न करना पड़ता है, इसलिए इन्हें अर्धस्वर भी कहते हैं ।
इसके अतिरिक्त स्वर तंन्त्रियों की स्थिति और कम्पन के आधार पर वर्णों को घोष और अघोष श्रेणी में भी बांटा जा सकता है ।
घोष : घोष का अर्थ है नाद या गूंज । जिन वर्णों का उच्चारण करते समय गूंज (स्वर तंत्र में कंपन) होती है, उन्हें घोष वर्ण कहते हैं । क वर्ग, च वर्ग आदि सभी वर्गों के अंतिम तीन वर्ण ग्, घ्, ङ्, ज्, झ्, ञ्, ड्, ढ्, ण्, द्, ध्, न्, ब्, भ्, म् तथा य्, र्, ल्, व्, ह् घोष वर्ण कहलाते हैं । इसके अतिरिक्त सभी स्वर भी घोष वर्ण होते हैं । इनकी कुल संख्या 30 है ।
अघोष : इन वर्णों के उच्चारण में प्राणवायु में कम्पन नहीं होता, अतः कोई गूंज न होने के कारण इन्हें अघोष वर्ण कहते हैं । सभी वर्गों के पहले और दूसरे वर्ण क्, ख्, च्, छ्, ट्, ठ्, त्, थ्, प्, फ्, श्, ष्, स्, आदि सभी वर्ण अघोष हैं । इनकी कुल संख्या 13 है ।
श्वास वायु के आधार पर वर्णों के दो भेद हैं : अल्पप्राण और महाप्राण ।
अल्पप्राण : जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास वायु कम मात्रा में मुख विवर से बाहर निकलती है । के वर्ग , च वर्ग आदि सभी वर्गों का पहला, तीसरा और पाॅंचवाॅं वर्ण ( क्, ग्, ङ्, च्, ज्, ञ्, ट्, ड्, ण्, त्, द्, न्, प्, ब्, म्) आदि तथा य्, र्, ल्, व् और सभी स्वर अल्पप्राण हैं ।
महाप्राण : जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास वायु अधिक मात्रा में मुख विवर से बाहर निकलती है, उन्हें महाप्राण ध्वनियां कहते हैं । प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण (ख्, घ्, छ्, झ्, ठ्, ढ्, थ्, ध्, फ्, भ् ) तथा श्, ष्, स्, ह् , ये सभी वर्ण महाप्राण है ।
अनुनासिक : अनुनासिक ध्वनियों के उच्चारण में नाक का सहयोग रहता है , जैसे – अं, ऑं, ईं, ऊं, ऍं आदि।