विज्ञान शिक्षण विधियां पार्ट 1
विज्ञान का अर्थ
पर्यावरण को समझने के लिए किए गए प्रयत्न विज्ञान कहा जाता है! विज्ञान लेटिन भाषा के साइंटिया शब्द से बना है जिसमें SCIO अर्थ होता है जानना
आइंस्टीन के अनुसार ~ हमारी ज्ञान अनुभूतियों की अस्त-व्यस्त है जनता क तर्कपूर्ण एक विचार प्रणाली बनाने के प्रयास को विज्ञान कहते हैं
वुडवर्न के अनुसार ~ विज्ञान वह मानवीय व्यवहार है जो प्राकृतिक वातावरण में स्थित परिस्थिति, घटित घटनाओं की अधिकतर शुद्धता से व्याख्या करने का प्रयास करता है
1937 में महात्मा गांधी के द्वारा बुनियादी शिक्षा में विज्ञान को उद्योगों के आधार पर पढ़ने पर जोर दिया गया
विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य
व्यावहारिक उद्देश्य
अनुशासनात्मक उद्देश्य
सांस्कृतिक व नैतिक उद्देश्य
व्यवसायिक उद्देश्य
अवकाश के समय का सदुपयोग
छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
विज्ञान की आवश्यकता
व्यवहारिक जीवन में उपयोगी,सांस्कृतिक मूल्यों का विकास,मानसिक अनुशासन में सहायक, नैतिक मूल्यों का विकास, बौद्धिक मूल्यों का विकास
विद्यालय स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य
- प्राथमिक स्तर पर ~
- बालकों में व्यवस्थित रूप से सोचने की आदत का विकास करना,
- बालकों में रचनात्मक व गणनात्मक शक्तियों का विकास करना,
- बालकों में प्राकृतिक घटनाओं के खोज व वर्गीकरण की योग्यता का विकास करना,
- बालकों में प्रकृति और भौतिक व सामाजिक पर्यावरण के प्रति रुचि बनाए रखना,
- बालकों में स्वस्थ जीवन के लिए अच्छी आदतों का विकास करना,
- बालकों में स्वच्छ व क्रमबद्धता से कार्य करने की आदत डालना,
- उच्च प्राथमिक विद्यालय स्तर पर,छात्र में वैज्ञानिक तथ्यों का ज्ञान प्रदान करना,
- तार्किक रूप से सोचने की योग्यता का विकास करना,
- तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालने की योग्यता का विकास करना
माध्यमिक स्तर पर
- विज्ञान पाठ्यक्रम के लिए आवश्यक सूचना तथा तथ्य प्रयोग के आधार पर अभ्यास किया जाना,
- बालकों में तथ्यों से सामान्य करण तक पहुंचने की योग्यता का विकास करना,
- जनजीवन पर विज्ञान के प्रभाव को समझना व वैज्ञानिक अभिरुचि का विकास करना,
- विज्ञान के महान आविष्कार और कहानियों के जीवन से प्रेरित होना,
- विज्ञान की प्रगति और विकास
- प्राथमिक स्तर पर विज्ञान पाठ्यक्रम का केंद्र बिंदु विद्यार्थी होता है।
- प्राथमिक स्तर पर विज्ञान को पर्यावरण विज्ञान कहते हैं।
- माध्यमिक स्तर पर परिपक्वता के अनुसार आस पास के वातावरण सहित पर्यावरण व प्रायोगिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।
विज्ञान के शिक्षक के गुण
प्रभावशाली व्यक्तित्व अध्यापक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिए उसे नेतृत्व क्षमता,निर्देशन क्षमता,आत्म नियंत्रण,तत्परता आदि गुुणों के साथ-साथ नियमों के अनुकूल होना आवश्यक है। वैज्ञानिक सक्रियता विज्ञान के शिक्षक को विज्ञान के ज्वलंत समस्याओं से परिचित होना जरूरी है पर्यावरण गतिविधियों के प्रति सचेत रहकर उसमें अपना सक्रिय योगदान देने वाला होना चाहिए
आदर्श वैज्ञानिक ~विज्ञान के शिक्षक को आदर्श वैज्ञानिक के सभी गुण जैसे तर्क ,निर्देशन आदि का होना आवश्यक है व्यवसायिक गुण ~इसमें विषय का ज्ञान,व्यापक दृष्टिकोण,मनोविज्ञान का ज्ञान, शैक्षिक नवाचार का ज्ञान व कक्षा नियंत्रण होना आवश्यक है
विज्ञान शिक्षण की विधियां
किसी भी विषय के अध्ययन के लिए शिक्षण विधियों का होना अति आवश्यक है शिक्षण विधियों के माध्यम से विषय का ज्ञान सरलता,सहजता व रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है शिक्षण विधियों के माध्यम से सुनिश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति सहज तरीके से प्राप्त की जा सकती है
प्रयोगशाला विधि~ यह मनोवैज्ञानिक विधि है अर्थात वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग पर आधारित है इस विधि में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण है । विद्यार्थी सक्रिय भूमिका व अध्यापक निरीक्षण की भूमिका में रहता है ।इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है यह क्रिया पर आधारित है छात्र स्वयं करके सीखता है छात्रों में उपकरण प्रयोग की कुशलता आती है वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है छात्रों में श्रम की महत्वता का विकास होता है छात्रों में निरीक्षण,तर्कशक्ति, ज्ञान, कौशल व आत्मविश्वास जैसे गुणों का विकास होता है छात्रों में सहयोग की भावना का विकास होता है इस विधि के द्वारा अच्छे गुणों के विकास में सहायक है
दोष
इस विधि में लापरवाही से किए गए कार्य दुर्घटना को जन्म दे सकते हैं अत्यधिक उपकरणों की आवश्यकता होती है इस विधि में खर्चा अधिक होता है छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है शिक्षक निष्क्रिय रहता है इस विधि में विद्यार्थी से अत्यधिक आशा रहती हैं
अनुसंधान/ह्यूरेस्टिक विधि~
इस विधि के प्रवर्तक के प्रोफेसर आर्मस्ट्रांग है इसमें अध्यापक पथ प्रदर्शक होता है तथा छात्र सक्रिय रहता है इस विधि से छात्रों में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है ह्यूरेस्टिक शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा से हुई है जिसका अर्थ होता है मैं स्वयं खोजता हूं इस विधि में बालक को कम से कम बता करके अधिक से अधिक खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है इस विधि में छात्र अनुसंधानकर्ता की भूमिका में रहता है इस विधि के द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है छात्र क्रियाशील रहते हैं और करके सीखते हैं
अनुसंधान विधि के चरण
- समस्या
- अध्यापक द्वारा समस्या से संबंधित निर्देश
- छात्र द्वारा अन्वेषक के रूप में समस्या पर विचार करना
- संबंधित पाठ्यक्रम का अध्ययन
- समस्या का निरीक्षण,तर्क व प्रयोग
- निर्णय
- मूल्यांकन
अनुसंधान विधि के गुण
छात्र स्वयं करके सीखते हैं जिससे छात्रों में आत्मविश्वास क्रियाशीलता अनुशासन जैसे गुणों का विकास होता है छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है बालक निरीक्षण व जिज्ञासा की भावना विकसित होती विद्यार्थियों में उनकी योग्यता व रूचि के अनुसार मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है छात्र स्वयं खोजने के कारण इसमें क्रियाशीलता पर आधारित होता है यह विधि स्वाध्याय पर बल देती है छात्रों का तार्किक दृष्टिकोण विकसित होता है ज्ञान स्पष्ट व स्थाई होता है
प्रयोगशाला विधि के दोष
अधिक समय व शक्ति की आवश्यकता होती है। यह विधि खर्चीली विधि है यह विधि प्राथमिक व उच्च प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है यह माध्यमिक व उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी है प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होती है छात्रों की संख्या अधिक होने पर इस विधि का प्रयोग व्यवहारिक नहीं होता इस विधि के द्वारा अध्यापन कार्य मंद गति से होता है जिससे समय की कमी होती है सीमित साधन वाले विद्यालयों में उपयोगी नहीं है मंदबद्धि बच्चों के लिए उपयोगी नहीं
प्रोजेक्ट,प्रायोजना या योजना विधि
इस विधि के प्रवर्तक हेनरी किलपेट्रिक है। इस विधि के द्वारा विद्यार्थी किसी समस्या के समाधान हेतु किसी प्रोजेक्ट को लेकर योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने का प्रयास करते हैं प्रोजेक्ट पर विभिन्न क्षमता वाले अलग-अलग छात्र अपनी योग्यता के अनुसार योगदान देते हैं अध्यापक मार्गदर्शक के रुप में भूमिका निभाता है
प्रोजेक्ट, परियोजना,योजना विधि के चरण :-
- परिस्थिति उत्पन्न करना
- योजना का चयन उद्देश्य स्पष्टीकरण
- प्रोजेक्ट का नियोजन
- प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन
- मूल्यांकन
- रिपोर्ट तैयार करना
प्रोजेक्ट पद्धति में सीखने के तीन नियम बताए गए हैं जो थोर्नडाइक के अनुसार है
तत्परता का नियम- बच्चो को उनकी रुचि के अनुसार कार्य देना चाहिए जिससे वह उन्हें तत्परता से कर सकें
प्रभाव का नियम- किए जा रहे कार्य का सकारात्मक परिणाम बच्चों को उस कार्य को करने पर प्रभाव डालता है ऐसे में अधिक सक्रिय व शीघ्र गति से करता है
अभ्यास का नियम- किसी कार्य को बार बार करने से विद्यार्थी उसमें अभ्यस्त हो जाता है और वह किए जा रहे कार्य को शीघ्र गति से कर सकता है
प्रायोजना विधि के गुण- यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है यह विद्यार्थियों की रुचि व मनोवृतियों पर पूरा ध्यान केंद्रित करती है।करके सीखने के नियम का पालन किया जाता है छात्रों में सामाजिकता की भावना का विकास होता है उनमें आत्मविश्वास,आत्मनिर्भर के गुणों का विकास भी किया जाता है। छात्र इस विधि के द्वारा स्वतंत्रता पूर्वक सोचने विचारने निरीक्षण करने के अवसर मिलता है।
विधि के दोष – इस विधि के अंतर्गत समय अधिक लगता है इस कारण संपूर्ण पाठ्यक्रम को एक निश्चित अवधि में पूरा नहीं किया जा सकता। इस विधि में अत्यधिक धन व समय की आवश्यकता होती है।
पर्यटन विधि इस विधि के जन्मदाता पेस्टोलॉजी है इस विधि के द्वारा छात्र प्रत्यक्ष देख कर के ज्ञान प्राप्त करते हैं जिसे ज्ञान स्थाई सुदृढ़ होता है छात्रों में जिज्ञासा,निरीक्षण शक्ति का विकास होता है। विधार्थियो में मानसिक शक्तियों का विकास होता है। पर्यटन स्थलों का ज्ञान प्राप्त होता है
पर्यटन विधि के दोष यह खर्चीली भी खर्चीली विधि है पर्यटन के कारण समय अधिक लगता है जिससे पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया जा सकता। पर्यटन स्थल पर दुुर्घटना की आशंका रहती है
अभिक्रमित अनुदेशन विधि
इस विधि के अंतर्गत छात्रों के लिए पाठ्यवस्तु को क्रम बंद रूप से छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत किया जाता है प्रत्येक पद को पढ़ने के साथ छात्रों को अनुक्रिया से पुनर्बलन प्रदान किया जाता है छात्र स्वयं अध्ययन के द्वारा सीखता है छात्रों को नवीन ज्ञान तथा पुनर्बलन प्रदान किया जाता है
अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धांत छोटे छोटे पदों का सिद्धांत- अभिक्रमित अनुदेशन में विषय वस्तु को छोटे-छोटे पदों में बांटा जाता है जिसे कमजोर छात्र भी प्रस्तुत विषय सामग्री को आसानी से समझ सकता है
क्रियाशीलता का सिद्धांत विद्यार्थी को क्रियाशील रखने के लिए स्वयं करके सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है अभिक्रमित अनुदेशन में रिक्त स्थान की पूर्ति करने वाले प्रश्नों का समावेश किया जाता है
पुनर्बलन का सिद्धांत अभिक्रमित अनुदेशन में छात्र छात्राओं को प्रत्येक पद के बाद सही गलत के उत्तर प्रदान किए जाते हैं और उनको पुनर्बलन प्रदान किया जाता है
तार्किक क्रम का सिद्धांत अभिक्रमित अनुदेशन स्वाध्याय की प्रवृत्ति पर अत्यधिक बल देता है विषय वस्तु को एक व्यवस्थित तार्किक क्रम से दिया जाताा है जो ज्ञात से अज्ञात की ओर सूत्र का प्रयोग किया जाता है
रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन की विशेषता यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे फ्रेम में प्रस्तुत करने के कारण बालक को समझने के लिए आसान होती है व्यक्तिगत विभिन्नता के कारण इस शिक्षण विधि से शिक्षण सरल होता है रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन के कारण विद्यार्थी क्रियाशील हो कर सीखता है बालक कम गलतियां करता है इस रेखीय अनुदेशन का प्रयोग पत्राचार पाठ्यक्रम में सर्वाधिक किया जाता है
PART 2 UPCOMING SOON……………