🔹🔷 शब्द विचार 🔷🔹
विकारी शब्द
विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं ।
A. विशेषण :
परिभाषा :-
वे शब्द जो किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं ।
जैसे :- नीला – आकाश, छोटी लड़की, दुबला आदमी, कुछ पुस्तकें आदि इन शब्दों में क्रमशः नीला, छोटी, दुबला, कुछ शब्द विशेषण हैं, जो आकाश, लड़की, आदमी, पुस्तकें आदि संख्याओं की विशेषता का बोध कराते हैं ।
अतः संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताने वाले ये शब्द विशेषण कहलाते हैं । वहीं वह ‘विशेषण’ पद जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाता है उसे ‘विशेष्य’ कहते हैं । उक्त उदाहरणों में आकाश, लड़की, आदमी, पुस्तकें आदि शब्द विशेष्य कहलाएंगे ।
विशेषण के प्रकार
विशेषण मुख्यत: पांच प्रकार के होते हैं ।
(1.) गुणवाचक विशेषण
(2.) संख्यावाचक विशेषण
(3.) परिमाणवाचक विशेषण
(4.) संकेतवाचक विशेषण व
(5.) व्यक्ति वाचक विशेषण ।
(1.) गुणवाचक विशेषण :-
वे शब्द, जो किसी संज्ञा या सर्वनाम के गुण, दोष, रूप, रंग, आकार, स्वभाव व दशा आदि का बोध कराते हैं, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं ।
जैसे – काला, पुराना, भला, छोटा, मीठा, देशी, पापी, धार्मिक आदि ।
(2.) संख्यावाचक विशेषण :-
वे विशेषण, जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित, अनिश्चित संख्या, क्रम या गणना का बोध कराते हैं, उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं । ये भी दो प्रकार के होते हैं-
(i) निश्चित संख्यावाचक विशेषण :-
वे संख्यावाचक विशेषण, जो किसी निश्चित संख्या का बोध कराते हैं, उन्हें निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे –
(अ) गणनावाचक विशेषण – एक, दो, तीन, चार आदि ।
(आ) क्रम वाचक विशेषण – पहला, दूसरा, तीसरा आदि ।
(इ) आवृत्तिवाचक विशेषण – दुुुगुना, तिगुना, चौगुना आदि ।
(ई) समुदाय वाचक विशेषण – दोनों, तीनों, चारों आदि ।
(ii) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण :-
वे संख्यावाचक विशेषण, जो अनिश्चित संख्या का बोध कराते हैं, उन्हें अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं ।
जैसे :- कुछ, सब, कई, बहुत, थोड़े आदि ।
(3.) परिमाणवाचक विशेषण :-
वे विशेषण, जो किसी पदार्थ की निश्चित या अनिश्चित मात्रा, परिमाण, नाप या तौल आदि का बोध कराते हैं, उन्हें परिमाण वाचक विशेषण कहते हैं ।
इसके भी दो उपभेद किए जा सकते हैं । जैसे –
(i) निश्चित परिणाम वाचक विशेषण – दो मीटर, पाॅंच किलो, सात लिटर आदि ।
(ii) अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण – थोड़ा, बहुत, कम, ज्यादा, अधिक, जरा-सा, सब आदि ।
(4.) संकेतवाचक विशेषण :-
वे सर्वनाम शब्द, जो विशेषण के रूप में किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताते हैं, उन्हें संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहते हैं ।
जैसे – (i) इस गेंद को मत फेंको ।
(ii) उस पुस्तक को पढ़ो ।
(iii) वह कौन गा रही हैं ?
इन सभी वाक्यों में ‘इस, उस, वह’ आदि शब्द संकेतवाचक विशेषण हैं ।
(5.) व्यक्ति वाचक विशेषण :-
वे विशेषण, जो व्यक्तिवाचक संज्ञाओं से बनकर अन्य संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताते हैं, उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते हैं ।
जैसे – जोधपुरी जूती, बनारसी साड़ी, कश्मीरी सेब, बीकानेरी भुजिया, आदि । उपरोक्त वाक्यों में जोधपुरी, बनारसी, कश्मीरी, बीकानेरी शब्द व्यक्तिवाचक विशेषण हैं ।
विशेष :-
कतिपय विद्वान एक और प्रकार – ‘विभागवाचक विशेषण’ का भी उल्लेख करते हैं।
जैसे – प्रत्येक, हर, एक आदि ।
विशेषण की अवस्थाएं :-
विशेषण की तुलनात्मक स्थिति को अवस्था कहते हैं । अवस्था के तीन प्रकार माने गए हैं ।
(i) मूलावस्था :- जिसमें किसी संज्ञा या सर्वनाम की सामान्य स्थिति का बोध होता है ।
जैसे – रहीम अच्छा लड़का है ।
मौलिक अच्छा छात्र है, आदि ।
(ii) उत्तरावस्था :- जिसमें दो संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की तुलना की जाती है ।
जैसे – राम रहीम से अच्छा है ।
प्रशांत अभिषेक से श्रेष्ठतर रहा है, आदि ।
(iii) उत्तमावस्था :- जिसमें दो से अधिक संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की तुलना करके एक को सबसे अच्छा या बुरा बतलाया जाता है, वहां उत्तमावस्था होती हैं ।
जैसे – अकबर सबसे अच्छा है ।
रजिया कक्षा में श्रेष्ठत्तम छात्रा है, आदि ।
अवस्था परिवर्तन :- मूलावस्था के शब्दों में त्तर तथा त्तम प्रत्यय लगाकर या शब्द के पूर्व से अधिक या सबसे अधिक शब्दों का प्रयोग कर क्रमशः उतरावस्था एवं उत्तमावस्था में प्रयुक्त किया जाता हैं। जैसे –
मूलावस्था उत्तरावस्था उत्तमावस्था
उच्च उच्चतर उच्चतम
श्रेष्ठ श्रेष्ठतर श्रेष्ठतम
तीव्र तीव्रतर तीव्रतम
अच्छा से अच्छा सबसे अच्छा
ऊंचा से ऊंचा सबसे ऊंचा
विशेषण की रचना :- संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया तथा अव्यय शब्दों के साथ प्रत्यय के मेल से विशेषण शब्द बनाए जाते हैं।
(i) संज्ञा शब्दों से विशेषण बनाना :- प्यार – प्यारा, समाज – सामाजिक, पुष्प – पुष्पित, स्वर्ण – स्वर्णिम, जयपुर – जयपुरी, धन – धनी, भारत – भारतीय, रंग – रंगीला, श्रद्धा – श्रद्धालु, चाचा – चचेरा, विष – विषैला, बुद्धि – बुद्धिमान, गुण – गुणवान, दूर – दूरस्थ आदि ।
(ii) सर्वनाम शब्दों से विशेषण बनाना :- यह – ऐसा, जो – जैसा, मैं – मेरा, तुम – तुम्हारा, वह – वैसा, कौन – कैसा आदि।
(iii) क्रिया शब्दों से विशेषण बनाना :- भागना – भगोड़ा, लड़ना – लड़ाकू, लूटना – लुटेरा आदि ।
(iv) अव्यय शब्दों से विशेषण बनाना :- आगे – अगला, पीछे – पिछला, बाहर – बाहरी आदि ।
B. क्रिया :
परिभाषा :-
वे शब्द, जिनके द्वारा किसी कार्य का करना या होना पाया जाता हैं, उन शब्दों को क्रिया कहते हैं । संस्कृत भाषा में क्रिया रूप को धातु कहते हैं, हिंदी में उन्हीं धातुओं के साथ ‘ना’ लग जाता हैं। जैसे – लिख से लिखना, हंसी से हंसना आदि ।
क्रिया के प्रकार :-
कर्म, प्रयोग तथा संरचना के आधार पर क्रिया के विभिन्न भेद किए जाते हैं –
1. कर्म के आधार पर :-
कर्म के आधार पर क्रिया के मुख्यतः दो भेद किए जाते हैं –
(i) अकर्मक क्रिया व
(ii) सकर्मक क्रिया ।
(i) अकर्मक क्रिया :-
वे क्रियाएं जिनके साथ कर्म प्रयुक्त नहीं होता तथा क्रिया का प्रभाव वाक्य के प्रयुक्त कर्ता पर पड़ता है, उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं ।
जैसे :- कुत्ता भौंकता हैं। कविता हंसती हैं। टीना सोती हैं। बच्चा रोता हैं। आदमी बैठा हैं, आदि ।
(ii) सकर्मक क्रिया :-
वे क्रियाएं, जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर न पड़ कर कर्म पर पड़ता हैं, अर्थात् वाक्य में क्रिया के साथ कर्म भी प्रयुक्त होता हैं, उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं ।
जैसे – भूपेंद्र दूध पी रहा है ।
नीतू खाना बना रही है ।
सकर्मक क्रिया के भी दो उपभेद किए जाते हैं –
(अ) एक कर्मक क्रिया :- जब वाक्य में क्रिया के साथ एक कर्म प्रयुक्त हो तो उसे एक कर्म क्रिया कहते हैं ।
जैसे – दुष्यंत भोजन कर रहा है ।
(आ) द्विकर्मक क्रिया :- जब वाक्य में क्रिया के साथ दो कर्म प्रयुक्त हुए हो तो उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं ।
जैसे – अध्यापक जी छात्रों को भूगोल पढ़ा रहे हैं । इस वाक्य में ‘पढ़ा रहे हैं’ क्रिया के साथ ‘छात्रों’ एवं ‘भूगोल’ दो कर्म प्रयुक्त हुए हैं। अतः ‘पढ़ा रहे हैं’ द्विकर्मक क्रिया हैं ।
2. प्रयोग तथा संरचना के आधार पर :-
वाक्य में क्रियाओं का प्रयोग कहां किया जा रहा हैं, किस रूप में किया जा रहा है, इसके आधार पर भी क्रिया के निम्न भेद होते हैं –
(i) सामान्य क्रिया :- जब किसी वाक्य में एक ही क्रिया का प्रयोग हुआ हो तो उसे सामान्य क्रिया कहते हैं ।
जैसे – महेंद्र जाता है । संतोष आई, आदि ।
(ii) संयुक्त क्रिया :- जो क्रिया दो या दो से अधिक भिन्नार्थक क्रियाओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं ।
जैसे – जया ने खाना बना लिया । हेमराज ने खाना खा लिया, आदि ।
(iii) प्रेरणार्थक क्रिया :- वे क्रियाएं जिन्हें कर्ता स्वयं न करके दूसरों को क्रिया करने के लिए प्रेरित करता है, उन क्रियाओं को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं ।
जैसे – दुष्यंत हेमंत से पत्र लिखवाता है । कविता सविता से पत्र पढ़वाती है, आदि।
(iv) पूर्वकालिक क्रिया :- जब किसी वाक्य में दो क्रियाएं प्रयुक्त हुई हो तथा उनमें से एक क्रिया दूसरी क्रिया से पहले संपन्न हुई हो तो पहले संपन्न होने वाली क्रिया पूर्व कालिक क्रिया कहलाती है ।
जैसे – धर्मेंद्र पढ़ कर सो गया । यहां सोने से पूर्व पढ़ने का कार्य हो गया अतः पढ़कर क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाएगी । ( किसी मूल धातु के साथ ‘कर’ या ‘करके’ लगाने से पूर्व काल क्या बनती है ।)
(v) नामधातु क्रिया :- वे क्रिया शब्द जो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों से बनते हैं, उन्हें नामधातु क्रिया कहते हैं।
जैसे – रंगना, लजाना, अपनाना, गरमाना, चमकाना, गुदगुदना आदि ।
(vi) कृदन्त क्रिया :- वे क्रिया पद, जो क्रिया शब्दों के साथ प्रत्यय लगने पर बनते हैं, उन्हें कृदन्त क्रिया कहते हैं ।
जैसे – चल से चलना, चलता, चलकर । लिख से लिखना, लिखता, लिखकर , आदि ।
(vii) सजातीय क्रिया :- वे क्रियाएं, जहां कर्म तथा क्रिया दोनों एक ही धातु से बनकर साथ-साथ प्रयुक्त होती है, उन्हें सजातीय क्रियाएं कहते हैं ।
जैसे – भरत ने लड़ाई लड़ी । राम ने खाना खाया, आदि ।
(viii) सहायक क्रिया :- किसी भी वाक्य में मूल क्रिया की सहायता करने वाले पद को सहायक क्रिया कहते हैं ।
जैसे – अरविंद पढता है । भानु ने अपनी पुस्तक मेज पर रखती है। उक्त वाक्य में ‘है’ तथा ‘दी है’ सहायक क्रियाएं हैं।
3. काल के अनुसार :-
जिस काल में कोई क्रिया होती है, उस काल के नाम के आधार पर क्रिया का भी नाम रख देते हैं । अतः काल के अनुसार पर क्रिया तीन प्रकार की होती है –
(i) भूतकालिक क्रिया
(ii) वर्तमान कालीक क्रिया
(iii) भविष्यत् कालिक क्रिया ।
(i) भूतकालिक क्रिया :- क्रिया का वह रूप, जिसके द्वारा बीते समय में (भूतकाल में) कार्य के संपन्न होने का बोध होता है, उसे भूतकालिक क्रिया कहते हैं ।
जैसे – सरोज गयी । सलीम पुस्तक पढ़ रहा था, आदि।
(ii) वर्तमान कालीक क्रिया :- क्रिया का वह रूप, जिसके द्वारा वर्तमान समय में कार्य के संपन्न होने का बोध होता है, उसे वर्तमान कालिक क्रिया कहते हैं ।
जैसे – कमल गाना गाती है । विमला खाना बना रही है, आदि।
(iii) भविष्यत् कालिक क्रिया :- क्रिया का वह रूप, जिसके द्वारा आने वाले समय में कार्य के संपन्न होने का बोध होता है उसे भविष्यत् कालिक क्रिया कहते हैं ।
जैसे – नीलम कल जोधपुर जाएगी । अशोक पत्र लिखेगा, आदि ।